Sunday, 12 June 2011

अपनी

किसी ने ना जाना हमसे,
न बात किसी ने मानी अपनी,
किन हालातों में कट रही है,
बेगुनाह जवानी अपनी!

है मक़सद कोई नहीं,
कोई नहीं दीवानी अपनी,
फिर भी बेसुध 'ज़िंदा' हैं,
'ज़िंदा-दिली' है कहानीअपनी!

Wednesday, 1 June 2011

SITUATION

वीरानी

बाँध भर गया है मुँह तक,
कब टूटेगा पता नही,
राह में छाई जो है मौत,
कब मरेगी पता नही,
ये सूखी ज़िंदगी,
है 'मुतमईन' अब वीरानी से,
ये काले बादल क्यो छाए है,
इनका मकसद मुझको पता नहीं!

Friday, 22 April 2011

दौर

इस दौर में 'ज़ख़्मों' की अदा क्या होगी,
जो है 'बा-खुदा' उसकी 'रज़ा' क्या होगी,
मैं ना-तासीर हूँ 'इल्म' से,
तेरे 'इल्म' को हो मालूम,
'ग़रीब' की दुआ क्या होगी!!!

जिगर

जिगर जब दिल को दगा देता है,
अपनी 'मासूमियत' ही बता देता है,
मेरी 'बाल्टी' में हैं ''खून-ओ-खराब'' बहुत,
बड़ा नदान हूँ जो मैं हर वक़्त,
दिल मेरा इंसानियत का पता देता है!

मुकाम

आज 'नज़्म-ए-समाँ' है हुजूर की किस्मत का,
लब पे दुआ है दिल में में 'हाँ' हैं,
करार है खुदी की अस्मत का,
'खुदा' गर देख ले मुझे तो 'जन्नत-ए-फ़िरदौस' हो मुक़म्मल,
मैं 'खुदा' से 'खुद' कहता हूँ,
क्या है 'मुकाम' तेरी 'रहमत' का?

प्रेम

'प्रेम' करूँ में भी 'कृष्णा' की भाँति,
श्रद्धा 'ह्रदय' में और 'मश्तिश्क' में सांची,
गोपियों को मैं मनाऊ कैसे?
मैं 'मैं' ही हूँ नहीं कोई 'भ्रम',
देवताओं की 'भाँति!!!'

लोकपाल

मैं 'मरु' या 'मारु' इन कुत्तों को,
जो भौंकते हैं बहुत और कांटते हैं,
बहुत कम,
बहुत कमी हैं इन 'कुत्तों' के व्यवहार में,
जो मैने ऐसी 'भाषा' बोली इन कुत्तों के बारे में,
तुम सीख लेना बोली ऐसी ही,
जो ये 'कुत्ते' ना लेने दे अधिकार हमे,
'लोकपालों' में!!!

दोस्त

मैने तुझसे दोस्ती की है,
तेरे तरानो से नहीं,
मैने तेरी 'खुश्बू' ली है,
तेरे दीवानो से नहीं,
तेरे 'हुस्न-ए-तरकश' की 'बनावट',
समझ ना आएगी,
तू है 'बनावटी' माना मैने,
चलो 'निपट' लेंगे इन्ही 'बनावट' से कभी!!!

शराब

शराब खोलो करो बात 'अस्मत' की,
'सुरूर' घोलो करो अब बात 'किस्मत' की,
'नश-ए-मन' हो चला मेरा करो बात अभी 'मोहसिन' की,
जब मेरा दोस्त 'जिगर-ए-नशा' रुखसत होगा,
ना करेगा कोई बात 'मैं खुद' चिलमन की!

Wednesday, 20 April 2011

सुराही

वो सुराही तुम्हे याद है बचपन की,
जहाँ 'बस्ती' थी,
साँस-ए-अदा 'उलझन' की,
सांपनुमा क्यूँ हो चली हैं यादें मेरी,
जैसे सुराही थी वो मेरे 'निज़ाम' की नहीं,
वरन गर्दन मेरे बचपन की!

Monday, 21 March 2011

हिन्दुस्तान

मैं नहीं हूँ 'सुख' में न तुम 'इब्तिदा' करना,
बड़ा 'नमाकूल' हैं यहाँ गुनाहों का ज़िक्र,
तुम न कभी 'इलतज़ा' करना,
तू हैं 'हिंद-परस्त' औरों से ज़्यादा ही,
पर होगी तेरी हार गर तू,
बयान-ए-इख्तियार करना,
जो 'मुसलसल-ईमान' में रहकर,
'नासरपरस्त-ए-हिन्दुस्तानी' करे तो उसको 'उसूलन' ही,
मेरे अहल-ए-वतन ऐसे 'नाशुक्र-ए-गुजारों' से,
मेरे 'वतन' को 'नमज़हब-ए-हिन्दुस्तान' करना!!!

गिला

गिला अब क्या करूँ जब,
जान-समझ गया हूँ शक़्शीयत सारी,
जिन्होने दिए थे 'नारे' 'सारे' 'इंसानियत' के,
और कहा था की सुन लो ए नज़ारे,
मैं तुम ही का हूँ 'भारत' और उसके किनारे,
जो 'एक' मर्तबा जान लिया मैने तुम्हे तो,
ये क्यूँ कहने लगे सारे,
क़ि करते हो तो बहुत 'ज़ुल्म' इंसानियत का तुम,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
इंसान हैं गर अगर 'गुरूर' हैं हमे,
जो पूछे नहीं 'धरम-करम' बस हों,
'इन्क़िलाब' के मारे!!!

Saturday, 19 March 2011

जंग

जंग की बात क्यूँ जब 'युद्ध' से ही मुख मोड़ दिया,
तिमाही शिशु पर मिटकर अपने शीश का मुख मोड़ लिया,
बड़ा 'मुश्क़िल-ए-बयाँ' हैं सितम मेरे 'कारीगर' के 'सनम',
मैं 'इकलौता' हूँ जिसने 'बच्पने' में ये करम किया!

Saturday, 5 March 2011

नशे

मैने नशे में सारे 'इंतज़ाम' कर लिए,
'हूर को नूर' मघरूर को आम कर दिए,
ये 'सियासत' की बिसात देखिए की मैने,
अपने सारे 'हुज़ूर' उनके नाम कर दिए,
मेरी हसरत-ए-गुरूर उनके नाम कर दिए,
यक़ीनन ये आदत थी मेरी मेरी,
क़ि 'जाते-जाते' मैने खांस को आम कर दिए!!!

बोगी

ये हुस्न--बारात हज़रात के झंडे,
मैने देखें हैं वो ग़ुरबत-गुजरात के दंगे,
जिसने भी जलाई थी वो बोगी,
ना था वो खुदा का बंदा पर था वो जो भी,
तुमने जला कर 'अवाम' को,
समझा सिखाया था 'उनको' सबक,
लानत है मुझपे जो मैं चुप रहा अब तलक,
अब मैं बोलता हूँ ये ही,
'नफ़रत' का सिला 'नफ़रत' कब तलक सही?
हिंदू-मुसलमान को लड़ाया हद तक,
सब थी 'सियासत' की बातें तो चुप रहा अब तक,
अब कहता हूँ की आंगे बढ़ो 'अब्दुल-भाई' मेरे,
माफ़ करो हमको जो हुई ऐसी व्यवस्था,
मेरी 'ईदी' मिले जब तलक,
'दीवाली' का दीप 'मुझसे' नहीं जलता!!!

Monday, 21 February 2011

यूँ ही

नहीं परेशानी कुछ नहीं नादानी कुछ भी नहीं,
मन कभी होता है की छोड़ 'ज़िंदगी' की बाँह मैं,
मौत से दामन जोड़ लूँ,
पर दिल फिर ये कहता है क्यूँ बिखरते हो तुम सनम,
मौत तो आनी है क्यूँ उसे बुलाते हो,
ज़िंदगी गर नादानी है तो बच्चे क्यूँ नहीं छाते हो!

मुझे

रकम तेरी 'मैहर' की मेरे काम न आएँगी,
हसीन की ऐसी बे-रूखी मुझको भी ना भाएँगी,
न पच पाएगी मुझको कायरों की बिसात,
तेरी मुझ पर की चुकी 'रहनूमाई' भी न रास आएगी,
क्या चाहता हूँ मैं तुझ से,
मैं खुद नहीं यक़ीनन,
पर मेरी 'तुझसे' नाफ़रमानी,
मुझको सच में 'सताएँगी'!!!

गिला

मैं 'पी' गया बोतल सारी,
नयी बोतल खोल दे,
चढ़ी है मुद्दत के बाद,
अपनी 'रुखसत' घोल दे,
मैं पीता तो हूँ दिल खोलकर,
पर पुरानी वो बोतल खोल दे,
बरसो-बाद आया हूँ नज़र में मैं,
तू मुझसे 'गिला' बोल दे!

चाह है

मुझे भी रोशनी पसंद है,
उन्ही तारों की तरह,
मुझे भी ज़िंदगी पसंद है,
उन ज़िंदा नज़ारों की तरह,
पसंद है मुझको भी वो सर्द रातें,
किसी कंबल में लिपटे बच्चे की तरह,
डराती हैं अकेली रातें मुझकों भी,
बुरे गुज़रे 'बचपन' की तरह,
'बिखर' जाती हैं साँसे भी मेरी,
तेरी बिखरी हुई 'खुश्बू' की तरह!

अंदर की आह

ए-गुलिस्ताँ मेरे माज़रा क्या है,
जो खुद 'तिही' है,
'गूदा' क्या है?
जो है 'बेज़ार' रून्ह से,
'माँस' को क्यों 'ज़ख़्म',
जो 'ज़ख़्मी' है 'भीतर' से
तो क्यूँ ए-नादान मेरे,
'पंजर' का 'आसरा' क्या है!!!

अरमान

मेरी हथेली में सारी कायनात छुपी है,
खोल दे उसको और देख ले नज़ारे सारे,
मेरी बाँह में बसे है हर अरमान तिहारे,
लिपट जा उनसे और सारा आसमान सहेज ले,
चंद चाँद-तारे गर फिसल भी जायें अगर तो,
मार गोली उनको उनकी वजह से न तू 'गिला' ले,
मेरे पास कतार हैं इन जैसो की,
तू जब भी चाहे इन 'तारों' को घर पर खाने पर बुला ले!!!

Friday, 18 February 2011

मज़हब छोड़ो काफिरों से नाता जोड़ो

जो मैने गाया तेरे तारानो को दर-ब-दर तू कहता है मैं होश मैं हूँ,
जो मैं 'आँसुओं' को सिमटने बैठ बैंठा सारे कहने लगे मैं 'मदहोश' सा कुछ हूँ,
तू 'इनकार' कर 'ज़बान' पर 'अल्लाह' कहता मैं भी हूँ मगर 'ए-मज़हब-कारींदार' मेरे,
जो हो, था, होगा या हमेशा रहा है 'इस्लाम' तेरा वही 'हिंद' का ईमान है,
'हिन्दुस्तान' किसी एक की जागीर नहीं यही हम सब का 'निशान' हैं!

कुंठा

या मेरे ख़ुदा मुझे पहले बता दे,
क़ि 'खांकसार' का इंतज़ाम क्या है,
'पनाह' तेरी क़ुबूल हुई तो जहनसीब हूँ मैं,
या फिर 'मुद्दत-ए-इंतज़ाम' क्या है?
तेरी 'महफ़िल-ए-सरफ़राज़'
का इक 'इंतज़ाम' हूँ मैं,
बता मेरे 'मुवक़िल-ए-क़ाफिरा' तेरा 'ईमान' क्या है!
मैने कोई अस्मत न लूटी है अब तलक,
'तलाक़' का इंतज़ाम' क्या है,
मैने की है 'बुत-परस्ती' मेरे यार की,
मेरा यार है 'कृष्ण' खुद,
अब बता मैं क्या करूँ!

यूँही

मेरा 'बापू' मेरे आसुओं का 'स्रोत्र' है,
क्यूंकी वो मेरा 'प्रेरणा-स्रोत्र' है,
छापकर जिसको जिसके पीछे पड़े हैं ये लोग,
क्या मालूम 'असल-में' हम-सबकी तकदीर है?
बापू को जाना जिसने 'धन्य' हो गये सब,
बाकी सारे 'धनवानो' की 'जागीर' है,
जिसने 'त्याग' दिया 'काम' को,
वो 'महात्मा' 'कामना-योग्य' 'महावीर' है!

मेरे आठ ज़ाम!

मेरे आठ ज़ाम!

पहला जाम मुझे फक़त छेड़ता है,
दूजा पहले का मुँह 'देखता' है!,
तीजा मुझे सुकून देता है,
चौथा किसी के 'चौथे' की याद में रोता है,
पाँचवा 'शायरी' को बरम-बार टोकता है,
छठा मुझे 'कुत्ता' बनाकर औरों पर 'भौंकता है',
सातवाँ मुझे मेरे यार की गोद में फैंकता है,
आठवाँ मुझे दिल ही दिल में 'दिलबर' के लिए,
'जिगर' जलाने से रोकता है!

मौत

मौत का एक दिन मुक़रर्र है,
ज़िंदगी की बाँह फैला ले,
जाती हैं जान तो जाए,
पर जान को पहले बुला ले,
पनाह दे कुछ गैरों को भी,
मौत के फरिश्ते को बहला ले,
देखें हैं हमने 'मौत' से डरने वाले बहुत,
तू दुत्त्कार ज़िंदगी को मौत का दामन सहला ले,
तू सिकंदर है कोई लतीफ़ा नहीं 'ईमान' से,
जाए गर यार की जान तेरे पहले तो,
तू ईमान से 'ख़ुदकुशी' का इंतज़ाम बना ले,
अब ये ज़िंदगी 'मौत' की 'मुंतज़ार' है,
क्यूंकी 'मौत का एक दिन मुक़र्रर' है!

Monday, 14 February 2011

बेवजह

तेरे लिए ही बने हैं,
सुख-ओ-सुकून सारे,
मत 'बेवजह' छोड़ ये नज़ारे,
मुन्नी की 'बदनामी' तेरी लिए थी,
शीला की 'जवानी' तेरे लिए थी,
तू ही था 'इश्क़-ओ-मोहब्बत' का पेगंबर,
ये सारी 'कायनात' तेरे लिए थी!!!

प्यासा

ये ज़िंदगी थम गयी,
यूँ ही नहीं,
जो साथ था हमेशा,
अब मेरे साथ नहीं,
अब जल चुकी 'आहों' में कहाँ,
मेरा 'बास' नहीं,
मैं 'प्यासा' तो हूँ,
मगर 'ज़िंदगी' की 'प्यास' नहीं!!!

Tuesday, 8 February 2011

मेरा 'मुक़द्दर'

मुझे 'गुमान' है उस 'जहाँ' पर,
जिसे 'हिन्दुस्तान' कहते हैं ये लोग,
करते जिसकी 'ज़ियारत' 'सरपरस्त',
उसे ही 'गुमान' कहते हैं ये लोग,
मेरे हिंद का 'बावस्ता' मेरे,
गुमान से हैं,
तू है 'हिंदू' यही' कहते हैं ये लोग,
मैं भी 'काफ़िर' मज़े से हो जाऊं,
मेरे लोग गर हैं हिन्दुस्तान ये भी सही,
पर मज़े से कह दे कि, मज़े से रहते हैं ये लोग,
और ये है 'असलीयत' की ऐसे भी
होतें हैं ये लोग!!!!

ख़ुदा

ख़ुदा को ढूँढ रहा न जाने,
खोदा तूने कहाँ-कहाँ,
जो बास करे है मेरे 'दिलबर' में,
वो कैसे मिलेगा यदा-कहाँ?
जो 'दीदार-ए-खुदा' नसीब हो भी जाए तुझे,
पर कहाँ से लाएँगा 'पाक-ओ-दिलकश' दिलबर,
खुदाई करने को ये पहले तू बता मुझे!

प्यार

गहराई प्यार में होती है,
बयान-ए-मोहब्बत में नहीं,
जितनी सीधी हो प्यार की बात,
कोई चीज़ उससे 'दिलकश' नहीं,
उँचाई 'ज़ज़्बात' में होती है,
अंदाज़-ए-ज़ज़्बात में नहीं,
सचाई 'यार' में होती है,
कोई 'ख़ुदाई' में नहीं!!!

जाम

ये 'खाली जाम' ये खाली पत्ते,
नहीं लगते इस अंजुमन में अच्छे,
भर दो इन्हे अपनी नज़रों से साकी,
तू ही मेरा माली-ए-गुलशन है,
तेरी मौजूदगी में मर जायें हम?
मर तो गये तेरी नज़रों से,
पर यूँ इस कदर कुत्ते की मौत में हम,
कुछ 'अच्छे' नहीं लगते!

खुशनसीब

मैने आज जम के पी है,
मैं 'खुशनसीब' हूँ आज,
मेरे 'यारों' ने भी 'उल्टी' की है,
सीधी जब तलक चला,
तो था मैं 'नागवार',
जो 'उल्टा' चल दिया,
तो औरों ने भी ज़हमत की है,
आज हश्र-ओ-अंज़ाम जो भी,
मैं खुश हूँ मेरे 'खुदा' ने 'रहमत' की है!

चीज़

मैं चीज़ 'लाज़वाब' हूँ,
जो संभाल ले तो 'शराब' हूँ,
जो मदहोश कर दे तो 'खराब' हूँ,
वो चस्म-ओ-चराग़ हूँ,
मैं चीज़ नहीं 'मिज़ाज़' हूँ,
ग़ालिब का 'मिस्रा' हूँ,
मीर की 'बयार' हूँ,
मैं 'ज़ुस्तज़ु' हूँ गैरों की,
अपनो का मैं 'साज़' हूँ,
गलियों से पूछकर देखो कभी,
मैं कर गुज़रने को तयार हूँ,
वफ़ा को वफ़ा दगा को दगा से मारा मैने,
मैं दुश्मनो का दुश्मन और 'यारों का यार' हूँ!

Sunday, 6 February 2011

लूट

मेरे 'मालिक' ने जन्नत लूट ली,
मेरे 'हिस्से' की मन्नत लूट ली,
मैं था 'बे-आसरा' सही,
वो 'खुश्बू' थी जिसने,
'ज़हमत' लूट ली,
मेरे ना-गवार शक्श तूने,
न चाहे ही सही,
पर सारी 'असमत' लूट ली!

हम क्या हैं!

वो हमें अपना 'ख्याब' मान बैंठे,
पर हमे पता है हम उस ख्वाब जैसे नहीं,
सब कुछ है हमारे पास,
मगर हम सच कहते हैं की 'पैसे' नहीं,
और वो 'प्यार','मुहब्ब्बत' गर था 'दिखावा',
तो 'लानत' मार मेरे पे मेरे यार अभी,
हम जो कुछ भी हों शुक्र है 'तेरे जैसे नहीं'!!!

नादान

ये 'शख़्शियात' बड़ी 'नादान' है,
असलियत से अंजान भी सही,
असल में है ये 'नज़ाकत' से बरी,
जो दिलों के 'गदर' देखें हमने,
नज़ाकत भूल गये,
उनसे जब आँखें हुई चार,
उनकी 'बाहों' में 'झूल' गये!

Saturday, 5 February 2011

काग़ज़

'काग़ज़' भर गया पुरानी यादों से,
नया 'पन्ना' बना देना चाहिए,
उन बिसरी बातों को कब तक 'संजोएंगे',
सारी बातें मिटा देनी चाहिए,
कोई 'तस्वीर' नहीं फलक़ बातें ही हैं 'जहाँ' में,
नई 'बातों' और नई 'रातों' को भी जगह देनी चाहिए,
पुरानी 'आग' अब 'राख' बन चुकी,
इस राख को 'गंगा' में बहा देनी चाहिए,
हम 'बन्जारे' बहुत हो लिए,
अब 'बस्ती' बसा देनी चाहिए
एक 'चिंगारी' की दरकार है,
'बुझे' दिल में भी 'आग' लगा देनी चाहिए!