Saturday, 5 February 2011

काग़ज़

'काग़ज़' भर गया पुरानी यादों से,
नया 'पन्ना' बना देना चाहिए,
उन बिसरी बातों को कब तक 'संजोएंगे',
सारी बातें मिटा देनी चाहिए,
कोई 'तस्वीर' नहीं फलक़ बातें ही हैं 'जहाँ' में,
नई 'बातों' और नई 'रातों' को भी जगह देनी चाहिए,
पुरानी 'आग' अब 'राख' बन चुकी,
इस राख को 'गंगा' में बहा देनी चाहिए,
हम 'बन्जारे' बहुत हो लिए,
अब 'बस्ती' बसा देनी चाहिए
एक 'चिंगारी' की दरकार है,
'बुझे' दिल में भी 'आग' लगा देनी चाहिए!

No comments:

Post a Comment