खाली हाथ भरे ज़ज़्बात
This is a blog of my writings and thoughts.
Wednesday, 1 June 2011
वीरानी
बाँध भर गया है मुँह तक,
कब टूटेगा पता नही,
राह में छाई जो है मौत,
कब मरेगी पता नही,
ये सूखी ज़िंदगी,
है 'मुतमईन' अब वीरानी से,
ये काले बादल क्यो छाए है,
इनका मकसद मुझको पता नहीं!
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