उन्ही तारों की तरह,
मुझे भी ज़िंदगी पसंद है,
उन ज़िंदा नज़ारों की तरह,
पसंद है मुझको भी वो सर्द रातें,
किसी कंबल में लिपटे बच्चे की तरह,
डराती हैं अकेली रातें मुझकों भी,
बुरे गुज़रे 'बचपन' की तरह,
'बिखर' जाती हैं साँसे भी मेरी,
तेरी बिखरी हुई 'खुश्बू' की तरह!
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