वो 'गुरूर' की 'मैहर-बानी' थी,
या था 'सुरूर' 'जवानी' का,
जो तुझ को 'खुदा' मान बैठा,
था 'कसूर' मेरा या मेरी 'दीवानी' का!
मेरे पास जो होती तुम,
बादल में हो रही 'बारिश जैसे',
न होता होश 'पानी' का मुझे,
खुद 'बरसता' में 'बूँद-बूँद',
बनकर तेरी 'घीली-चदारिया' में,
ऐसे-जैसे बे-रंग रंगता कोई,
श्याम-राधा को 'पिचकारी से'!!
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