Sunday, 5 September 2010

मैं शराबी हूँ!

क्यूँ परेशान हैं तू?
क्या मेरे 'क़ौल' पर 'अयेत्बार' नहीं,
'वादा' हैं जवाबन,
तेरा मुझ पर ही 'इख्तियार' है,
याद रख में 'शराबी' हूँ कोई 'सियासतदार' नहीं!

'बादाकश ' हूँ मगर पर ए मेरे 'हमसफ़र',
करना इतना यकीन की साकी तुझ से भी,
कहीं ज़्यादा थी 'हसीन',
यह इज़हार मैने तुझसे कर लिया,
'शराबी' हूँ मैं कोई 'काज़िब' नहीं!

तेरे घर कल शाम जो आया,
तुझ पर कम, तेरी 'रकम' पर थी,
ज़्यादा नज़र मेरी जो तुझे ही सनम,
'उलफत-ए-साकी' बना बैठा,
'शराबी' हूँ मगर कोई 'चोर' नहीं!

मैं तो सनम तेरे लिए ही पीया करता हूँ,
जो महबूब को मेरे 'तरानो' से सज़ा सकूँ,
जो तू 'कबीदा' हो गयी,
मुजरिम हूँ तेरा,
शराबी हूँ, तेरा 'हम-सफ़ीर' नहीं!

और यह कसूर मेरा नहीं हैं,
ए मेरे बिस्मिल,
जो तेरी आँखें 'चश्म-ए-मायगूऊन' नहीं,
जो 'बेखत्ता' 'मय-ए-आबिद' हो बैठा,
याद रख 'शराबी' हूँ कोई 'वली' नहीं!

- अभिषेक बुंदेला

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