मैं नहीं हूँ 'सुख' में न तुम 'इब्तिदा' करना,
बड़ा 'नमाकूल' हैं यहाँ गुनाहों का ज़िक्र,
तुम न कभी 'इलतज़ा' करना,
तू हैं 'हिंद-परस्त' औरों से ज़्यादा ही,
पर होगी तेरी हार गर तू,
बयान-ए-इख्तियार करना,
जो 'मुसलसल-ईमान' में रहकर,
'नासरपरस्त-ए-हिन्दुस्तानी' करे तो उसको 'उसूलन' ही,
मेरे अहल-ए-वतन ऐसे 'नाशुक्र-ए-गुजारों' से,
मेरे 'वतन' को 'नमज़हब-ए-हिन्दुस्तान' करना!!!
Monday, 21 March 2011
गिला
गिला अब क्या करूँ जब,
जान-समझ गया हूँ शक़्शीयत सारी,
जिन्होने दिए थे 'नारे' 'सारे' 'इंसानियत' के,
और कहा था की सुन लो ए नज़ारे,
मैं तुम ही का हूँ 'भारत' और उसके किनारे,
जो 'एक' मर्तबा जान लिया मैने तुम्हे तो,
ये क्यूँ कहने लगे सारे,
क़ि करते हो तो बहुत 'ज़ुल्म' इंसानियत का तुम,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
इंसान हैं गर अगर 'गुरूर' हैं हमे,
जो पूछे नहीं 'धरम-करम' बस हों,
'इन्क़िलाब' के मारे!!!
जान-समझ गया हूँ शक़्शीयत सारी,
जिन्होने दिए थे 'नारे' 'सारे' 'इंसानियत' के,
और कहा था की सुन लो ए नज़ारे,
मैं तुम ही का हूँ 'भारत' और उसके किनारे,
जो 'एक' मर्तबा जान लिया मैने तुम्हे तो,
ये क्यूँ कहने लगे सारे,
क़ि करते हो तो बहुत 'ज़ुल्म' इंसानियत का तुम,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
फिर क्यूँ तुम ये सोचते हों 'इंसान' हैं बस हमारे,
इंसान हैं गर अगर 'गुरूर' हैं हमे,
जो पूछे नहीं 'धरम-करम' बस हों,
'इन्क़िलाब' के मारे!!!
Saturday, 19 March 2011
जंग
जंग की बात क्यूँ जब 'युद्ध' से ही मुख मोड़ दिया,
तिमाही शिशु पर मिटकर अपने शीश का मुख मोड़ लिया,
बड़ा 'मुश्क़िल-ए-बयाँ' हैं सितम मेरे 'कारीगर' के 'सनम',
मैं 'इकलौता' हूँ जिसने 'बच्पने' में ये करम किया!
तिमाही शिशु पर मिटकर अपने शीश का मुख मोड़ लिया,
बड़ा 'मुश्क़िल-ए-बयाँ' हैं सितम मेरे 'कारीगर' के 'सनम',
मैं 'इकलौता' हूँ जिसने 'बच्पने' में ये करम किया!
Saturday, 5 March 2011
नशे
मैने नशे में सारे 'इंतज़ाम' कर लिए,
'हूर को नूर' मघरूर को आम कर दिए,
ये 'सियासत' की बिसात देखिए की मैने,
अपने सारे 'हुज़ूर' उनके नाम कर दिए,
मेरी हसरत-ए-गुरूर उनके नाम कर दिए,
यक़ीनन ये आदत थी मेरी मेरी,
क़ि 'जाते-जाते' मैने खांस को आम कर दिए!!!
'हूर को नूर' मघरूर को आम कर दिए,
ये 'सियासत' की बिसात देखिए की मैने,
अपने सारे 'हुज़ूर' उनके नाम कर दिए,
मेरी हसरत-ए-गुरूर उनके नाम कर दिए,
यक़ीनन ये आदत थी मेरी मेरी,
क़ि 'जाते-जाते' मैने खांस को आम कर दिए!!!
बोगी
ये हुस्न-ए-बारात हज़रात के झंडे,
मैने देखें हैं वो ग़ुरबत-गुजरात के दंगे,
जिसने भी जलाई थी वो बोगी,
ना था वो खुदा का बंदा पर था वो जो भी,
तुमने जला कर 'अवाम' को,
समझा सिखाया था 'उनको' सबक,
लानत है मुझपे जो मैं चुप रहा अब तलक,
अब मैं बोलता हूँ ये ही,
'नफ़रत' का सिला 'नफ़रत' कब तलक सही?
हिंदू-मुसलमान को लड़ाया हद तक,
सब थी 'सियासत' की बातें तो चुप रहा अब तक,
अब कहता हूँ की आंगे बढ़ो 'अब्दुल-भाई' मेरे,
माफ़ करो हमको जो हुई ऐसी व्यवस्था,
मेरी 'ईदी' न मिले जब तलक,
'दीवाली' का दीप 'मुझसे' नहीं जलता!!!
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