Sunday, 12 June 2011

अपनी

किसी ने ना जाना हमसे,
न बात किसी ने मानी अपनी,
किन हालातों में कट रही है,
बेगुनाह जवानी अपनी!

है मक़सद कोई नहीं,
कोई नहीं दीवानी अपनी,
फिर भी बेसुध 'ज़िंदा' हैं,
'ज़िंदा-दिली' है कहानीअपनी!

Wednesday, 1 June 2011

SITUATION

वीरानी

बाँध भर गया है मुँह तक,
कब टूटेगा पता नही,
राह में छाई जो है मौत,
कब मरेगी पता नही,
ये सूखी ज़िंदगी,
है 'मुतमईन' अब वीरानी से,
ये काले बादल क्यो छाए है,
इनका मकसद मुझको पता नहीं!