इस दौर में 'ज़ख़्मों' की अदा क्या होगी,
जो है 'बा-खुदा' उसकी 'रज़ा' क्या होगी,
मैं ना-तासीर हूँ 'इल्म' से,
तेरे 'इल्म' को हो मालूम,
'ग़रीब' की दुआ क्या होगी!!!
Friday, 22 April 2011
जिगर
जिगर जब दिल को दगा देता है,
अपनी 'मासूमियत' ही बता देता है,
मेरी 'बाल्टी' में हैं ''खून-ओ-खराब'' बहुत,
बड़ा नदान हूँ जो मैं हर वक़्त,
दिल मेरा इंसानियत का पता देता है!
अपनी 'मासूमियत' ही बता देता है,
मेरी 'बाल्टी' में हैं ''खून-ओ-खराब'' बहुत,
बड़ा नदान हूँ जो मैं हर वक़्त,
दिल मेरा इंसानियत का पता देता है!
मुकाम
आज 'नज़्म-ए-समाँ' है हुजूर की किस्मत का,
लब पे दुआ है दिल में में 'हाँ' हैं,
करार है खुदी की अस्मत का,
'खुदा' गर देख ले मुझे तो 'जन्नत-ए-फ़िरदौस' हो मुक़म्मल,
मैं 'खुदा' से 'खुद' कहता हूँ,
क्या है 'मुकाम' तेरी 'रहमत' का?
लब पे दुआ है दिल में में 'हाँ' हैं,
करार है खुदी की अस्मत का,
'खुदा' गर देख ले मुझे तो 'जन्नत-ए-फ़िरदौस' हो मुक़म्मल,
मैं 'खुदा' से 'खुद' कहता हूँ,
क्या है 'मुकाम' तेरी 'रहमत' का?
प्रेम
'प्रेम' करूँ में भी 'कृष्णा' की भाँति,
श्रद्धा 'ह्रदय' में और 'मश्तिश्क' में सांची,
गोपियों को मैं मनाऊ कैसे?
मैं 'मैं' ही हूँ नहीं कोई 'भ्रम',
देवताओं की 'भाँति!!!'
श्रद्धा 'ह्रदय' में और 'मश्तिश्क' में सांची,
गोपियों को मैं मनाऊ कैसे?
मैं 'मैं' ही हूँ नहीं कोई 'भ्रम',
देवताओं की 'भाँति!!!'
लोकपाल
मैं 'मरु' या 'मारु' इन कुत्तों को,
जो भौंकते हैं बहुत और कांटते हैं,
बहुत कम,
बहुत कमी हैं इन 'कुत्तों' के व्यवहार में,
जो मैने ऐसी 'भाषा' बोली इन कुत्तों के बारे में,
तुम सीख लेना बोली ऐसी ही,
जो ये 'कुत्ते' ना लेने दे अधिकार हमे,
'लोकपालों' में!!!
जो भौंकते हैं बहुत और कांटते हैं,
बहुत कम,
बहुत कमी हैं इन 'कुत्तों' के व्यवहार में,
जो मैने ऐसी 'भाषा' बोली इन कुत्तों के बारे में,
तुम सीख लेना बोली ऐसी ही,
जो ये 'कुत्ते' ना लेने दे अधिकार हमे,
'लोकपालों' में!!!
दोस्त
मैने तुझसे दोस्ती की है,
तेरे तरानो से नहीं,
मैने तेरी 'खुश्बू' ली है,
तेरे दीवानो से नहीं,
तेरे 'हुस्न-ए-तरकश' की 'बनावट',
समझ ना आएगी,
तू है 'बनावटी' माना मैने,
चलो 'निपट' लेंगे इन्ही 'बनावट' से कभी!!!
तेरे तरानो से नहीं,
मैने तेरी 'खुश्बू' ली है,
तेरे दीवानो से नहीं,
तेरे 'हुस्न-ए-तरकश' की 'बनावट',
समझ ना आएगी,
तू है 'बनावटी' माना मैने,
चलो 'निपट' लेंगे इन्ही 'बनावट' से कभी!!!
शराब
शराब खोलो करो बात 'अस्मत' की,
'सुरूर' घोलो करो अब बात 'किस्मत' की,
'नश-ए-मन' हो चला मेरा करो बात अभी 'मोहसिन' की,
जब मेरा दोस्त 'जिगर-ए-नशा' रुखसत होगा,
ना करेगा कोई बात 'मैं खुद' चिलमन की!
'सुरूर' घोलो करो अब बात 'किस्मत' की,
'नश-ए-मन' हो चला मेरा करो बात अभी 'मोहसिन' की,
जब मेरा दोस्त 'जिगर-ए-नशा' रुखसत होगा,
ना करेगा कोई बात 'मैं खुद' चिलमन की!
Wednesday, 20 April 2011
सुराही
वो सुराही तुम्हे याद है बचपन की,
जहाँ 'बस्ती' थी,
साँस-ए-अदा 'उलझन' की,
सांपनुमा क्यूँ हो चली हैं यादें मेरी,
जैसे सुराही थी वो मेरे 'निज़ाम' की नहीं,
वरन गर्दन मेरे बचपन की!
जहाँ 'बस्ती' थी,
साँस-ए-अदा 'उलझन' की,
सांपनुमा क्यूँ हो चली हैं यादें मेरी,
जैसे सुराही थी वो मेरे 'निज़ाम' की नहीं,
वरन गर्दन मेरे बचपन की!
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