खाली हाथ भरे ज़ज़्बात
This is a blog of my writings and thoughts.
Thursday, 27 January 2011
वो 'जिगर' भी क्या न जो जला था कभी,
था 'ए-मुंतज़ार या आतिश-ए-गीर' से कभी,
क्या उसका ज़यादा 'मुकाम' था,
उनकी 'तस्वीर' से सही?
मैने तुन्हे 'रून्ह-और-खाक' सौंपी' है अपनी,
न करना 'तकलुउफ' जो 'सो' जाऊ किसी की 'बाँह' में अभी!
भूल गये
वो तरानो से क्या मिले,
सुर-ओ-ताल भूल गये,
जो 'बॉज़्म' जम गयी,
अपनी 'जमात' भूल गये,
भूलना नहीं 'मक़सद',
मेरी 'नस्ल' का 'कम-से-कम',
वो 'चालू' क्या हुए इस-कदर,
'ईमान' की 'चाल' भूल गये
वफ़ा
वो
'
पतझड़'
भूलता नहीं,
दिल में चुभा अपनो का 'खंजर' भूलता नहीं,
मैने 'सजदे' किए हैं 'काफिरों' के,
'अहल-ए-वफ़ा' मुझसे वो 'मंज़र' भूलता नहीं,
मैं ना बदला था कभी,
न बदलूँगा अभी, 'सियासी' ज़ुबान 'नाज़ायज़' हैं,
दिल मेरे 'यही' चीज़ भर 'याद' रखना!!!
Tuesday, 25 January 2011
उड़ान
परिंदो के तो 'पर' निकलेंगे चाहे,
कितने भी गलीच-ओ-पायदान में रखना,
तलवार का मुक़्क़द्दर है 'चमकना',
तुम कितनी भी 'म्यान' में रखना,
मैं 'सोना' नहीं जो 'पिघल' जाऊँगा,
तेरी तमतमाती 'निगाहों' से,
मैं 'खाक' हूँ 'सरफरोशों' की,
ना 'जल' पाऊँगा ये 'ध्यान' में रखना!!!
- अभिषेक बुंदेला
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